Saturday, May 9, 2009

क्या कह के जायेंगे?

यह पता तो था.. पर गिला तो था,
और शिकायतो का, सिलसिला तो था..
यह कसूर नही मेरी किस्मत का,
यह कसूर नही तेरी तकदीर का,
जो मोहब्बत का नशा सा छाया,
पाया, खोया, खो कर पाया,
यूँही चाहतो का सिलसिला तो था,
क्यूँ पता भी था, और गिला भी था?
ज़ंग छिड़ी है जो हालत से,
पूछना है फिर अपने आप से,
गर पता जो था, तो शिकायतो का सिलसिला क्यूँ था?
हाँ कसूर नही किस्मत का,हाँ कसूर नही तकदीर का,
यह चाहतो का सिलसिला ही था,
सच पता तो था, अब गिला न था.

खुशबू

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