Sunday, May 10, 2009

On Mother's Day...

Mother's are special. I love my mom for being the best mom in the whole universe.
She is god's gift to me.

On this occasion I would like to dedicate this poem to my mother।

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एक टूटी कुटिया के बरामंदे में,
एक पुरानी चारपाई पर..
माँ की गोदी में रख कर सर,
एक मासूम ने कभी पूछा था,
माँ , क्यूँ तारा नही दिखता?


ओ मेरे बच्चे,
थोड़ा और आस लगा, थोड़ा धैर्य बंधा.
बादल जल्दी छ्ट जाएगा, और तारा टिमटिमायेगा,

एक छोटी कश्ती के सहारे से,
एक ऐसे विशाल सागर में,
माँ के पल्लू को खींच कर,
एक मासूम ने कभी पूछा था,
माँ , क्यूँ किनारा नही दिखता?

ओ मेरे बेटे,
थोड़ा और ज़ोर लगा, उम्मीद की किरण जगा,
कश्ती पार् लग जायेगी, और किनारा भी नज़र आयेगा,

एक घने जंगल के बीच में,

घने सन्नाटे की गूँज में,
माँ के कदमो का कर के पीछा,
एक मासूम ने कभी पूछा था,
माँ , रास्ता नज़र न आता?

ओ मेरे मुन्ने,
भैय को दूर भगा, हौसला, हिम्मत थोड़ा और बढ़ा,
जो मंज़िल का पता रख पायेगा, रास्ता ख़ुद ही खुल जाएगा,

ओ माँ प्यारी माँ,
सब कुछ बचपन में सिखला दिया!
जीवन का मार्ग बता दिया
अपने चरणों में स्वर्ग दिखा दिया
और इश्वर से साक्षात्कार करवा दिया!

खुशबू

2 comments:

  1. oh...toh aap kal yeh kar rahiin thee!!!

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  2. This would definitely be a great dedication to any mother.. guess, ur mother would have loved it.

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